Friday, November 9, 2012

कलयुग की मादुशाला मे ,जरुरत नही है प्याले की

कलयुग की मादुशाला मे ,जरुरत नही है प्याले की 
यहा सुंदर मनोहर बारबालये ,अपने लब से पिलाती है हाला
मै कृतक मनोहर ,पथिक हू ,मै एक अंजान डगर का
मै जान गया हु क्यो लोग धुंढते है राह सदा मधुशाला की .
मधुर हाला के दो पैग यारो ,सारा गम हर लेते है
अपने आगोश मे लेकर ,मीठी नींद सुला देते है
पहले जमाने मे हर पांच कोस पर होती थी मधुशाला
इस कलयुग मे यारो देखो ,हर घर मे हाला का है डेरा
मधुशाला की शोभा बाढती सुंदर सुंदर बारबालये
कर मै सागर मय लेकर , प्याला पीलाती बारबाळाये 

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