Thursday, June 21, 2012

मुक्तक
1
आन्धियो के चलने से परीन्दओ के नीड उजडते है
 बाग मे कालियो के खिलने से भवरो के दिल मचलते है  
2
खुद की पराछियो से ही अब वो डरने लगे है 
अपने हाथ मे खंजर लिये  पराछियो से ही लडने लगे है  
 3
वह ह्वाए जो पूरब से आती है मौसम बदलने का संदेश लाती है 
प्रात:भ्रमण को निकले हम आस पास की रौनके दिल को छू जाती है 
4
जब से बडी है दूरिया मंजिल दूर हि दूर नजर आती है 
कभी तो सुबह होगी इस इन्तजार मे सारी रात   गुजर जाती है 
5
वो जो दिन के उजालों में भटक गये थे कही 
शायद रात  के अंधेरे उन्हे सही रस्ता दिखा दे 

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