मुक्तक
1
आन्धियो के चलने से परीन्दओ के नीड उजडते है
बाग मे कालियो के खिलने से भवरो के दिल मचलते है
2
खुद की पराछियो से ही अब वो डरने लगे है
अपने हाथ मे खंजर लिये पराछियो से ही लडने लगे है
3
वह ह्वाए जो पूरब से आती है मौसम बदलने का संदेश लाती है
प्रात:भ्रमण को निकले हम आस पास की रौनके दिल को छू जाती है
4
जब से बडी है दूरिया मंजिल दूर हि दूर नजर आती है
कभी तो सुबह होगी इस इन्तजार मे सारी रात गुजर जाती है
5
वो जो दिन के उजालों में भटक गये थे कही
शायद रात के अंधेरे उन्हे सही रस्ता दिखा दे
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