Tuesday, November 13, 2012

कलयुग की मधुशाला मे ,जरुरत नही है प्याले की -5

५५९
पैमानो से छलक रही थी हाला ,मचल रहा था यौवन मतवाला !
सुरबाला मस्ती मे झूम रही थी ,लेकर कर मे मय का प्याला   !!
५६०
पैमनो से मस्ती छलक रही थी ,उफन रही थी मदमस्त हाला !
सबको अपना दिवाना बनाती ,एक अनुपम मधुशाला           !!
५६१
दौर पे दौर चल रहे जाम के रात्री मे यौवन मचल रहे थे !
जिस्मो  से ज्वाला निकल रही थी ,बारबालये थिरक रही थी !!
५६२
बंधे हुये थे सिमाअओ मे ,आजादी की चाह लिये !
पैमाने अग्न बढ रहे थे सुरबाला को लुभा रहे थे  !!
५६३
रात्री का यौवन छाया था पैमानो ने समा बांधाया था !
हुस्न की मलिका बनी थी शाकी ,मधुशाला मे ज्वार आया था !!

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