Sunday, November 18, 2012


સુરબલા 





इस कलयुग मे यारो देखो ,हर घर मे हाला का है डेरा

५०१
कलयुग की मादुशाला मे ,जरुरत नही है प्याले की 
यहा सुंदर मनोहर बारबालये ,अपने लब से पिलाती है हाला
५०२
मै कृतक मनोहर ,पथिक हू ,मै एक अंजान डगर का
मै जान गया हु क्यो लोग धुंढते है राह सदा मधुशाला की .
५०३
मधुर हाला के दो पैग यारो ,सारा गम हर लेते है
अपने आगोश मे लेकर ,मीठी नींद सुला देते है
५०४
पहले जमाने मे हर पांच कोस पर होती थी मधुशाला
इस कलयुग मे यारो देखो ,हर घर मे हाला का है डेरा
५०५
मधुशाला की शोभा बाढती सुंदर सुंदर बारबालये
कर मै सागर मय लेकर , प्याला पीलाती बारबाळाये

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