Tuesday, November 6, 2012

कलयुग का शंख नाद

ओ धरती के मानव
 तू अबतक मानवता सीख ना पाया
 जिनको था गले लगाना उनही को तुने ठुकराया
जीनहोने  था तुझको पाला पोसा
 पाढा लिखाकर बडा बनाया
आज जरुरत उनहे पडी तो
तूने  उनहे दुत्कार दिया
जिस उंगली को पकडके उनहोने
तुझे था चालना सिखाया
आज उनहे वही उंगली दिखाकार
तूने उनहे बेगाना बनाया
उसी कलमे वाली उनगली से
तूने उनहे चेताया
घर छोडकर
वाद्धाश्रम जाने को
तूने उनहे चेताया
ओ कलयुगी धरा के मानव
तूने कैसे उनहे बिसराया
सारी सारी रात जाग कर जिन्होने
सूखे   मे तूझे सुलाया
तूने उनहे दुत्कार दिया
और कलयुग का शंख बजाया




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