Tuesday, November 13, 2012

आसमा से उतर के मै ,सीधी धारा पर आई हू

साहित्य सरोवर से मोती चुनकर दिव्य धरा पे लाया हू
इसका मुक्तकाहार बनाकर तुम्हे सुनाने आया हू
जन्नत की हूर सुरबाला ,आज धरा पे आई है
साथ मे अपने सोमरस हाला मनोहर लाई है
आसमा की हूर हो तुम जब से धरा पे आई हो
आते हि कुच्छ ही पल मे ,सारे जहा पे छाई हो
आसमा से उतर के मै ,सीधी धारा पर आई हू
साथ मे अपने सागर मय लेकर तुम्हे पिलाने आई हू
हाला हू मे  दिव्य मनोहर हाला हू कर मे लिये सागर मय मनोहर 
यौवन का छालकता हुआ प्याला हू ,देवलोक से धरा पर आई १ रमणीय सुरबाला हू

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